पद सरोज श्री राम चंद्र के सुमर चतुर चित मेरो ।। ध्रुव ।।
सुमिरत सकल त्रास मिटि जैहैं, पाय पदारथ चारो ।। अंतरा ।।
जो पद जाय पडे, सुर पुर में ब्रह्मा धाय पखारो ।
सो जल शंकर धरे शीष पर, महादेव बरियारो ।। १।।
जेही पद के रज परसत पाहना, ऋषि पत्नी तना तारो ।
केवट धोए लियो नावरि में, नरक लोक भयटारो ।।२ ।।
जे पद पल भरि तेजत नाहीं, उदधि सुता उर धारो ।
सो पद शबरी हेरी नयना भरि, तिहुपुर भये उजारो ।।३।।
कोटि कोटि पापी पदपंकज, सुमिरत जंम निवारो ।
"लक्ष्मीपति" जौं चहत पद, तौं मति चरण विसारो ।। ४।।
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