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गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

मारग आत अहिल्या तारे (गीतावली भजन - १५)

"अहिल्योध्दार"

मारग आत अहिल्या तारे।। ध्रुव।।
दशरथ नन्दन असुर निकन्दन, निज जन विपति विदारण हारे।। अन्तरा।।

वासब दुराचार ते गौतम, दिन्हे शाप ताहि अविचारे।
पाछे जानि अदोष कहयो तव, भामिनी! शाप अकाट हमारे।। १।।

बसहुँ विजन वन तब लगि जालगि, नहिं अइहें अववेश दुलारे। 
परसि तासु पद पंकज रज शुचि, होइहसि कठिन शाप ते न्यारे।। २।।

गुरु ते गुप्त कथा सुनि राघव, पद से पाहन परसि उधारे। 
भई प्रगट गौतम धरनी तहँ, देखि रूप सब शूल विसारे।। ३।।

विनय किन्ह वहु भाँति अहिल्या, पुलक अंग ध्ग बहत पनारे। 
'लक्ष्मीपति' पद पूजि प्रेमते, गई जहाँ पति प्राण पियारे।। ४।।

दोहा - ब्रह्म आत्मा जीव इव, गुरु राघव सौमित्र। 
गये तहाँ ते सव जहाँ - मिथिला नगर पवित्र।।

टिप्पणी -  वासब = इन्द्र, अदोष = निर्दोष, पनारे = पनाला

कौशिक रघुनाथ संग आश्रम पगुधारे ( गीतावली भजन - १४ )

"यज्ञ विध्वंसक सुवाहु आदि का बध"

कौशिक रघुनाथ संग आश्रम पगुधारे।।ध्रुव।।
मागर महँ जात राम ताड़का संहारे।।अन्तरा।।

किन्ह यज्ञ सभारम्भ, वेद विहित सारे। 
साकल समिधा सआज्य, आगिन विच डारे।। १।।

देखि धूम राशि असुर, चकित ह्लो निहारे। 
धाय धाय रुधिर अस्थि यज्ञ भूमि डारे।। २।।

एकही सम्हारि वाण, तें सबाहु मारे। 
बन्धु को पठाय दिन्ह, सिन्धु के किनारे।। ३।।

सुगति पाय दैत्य सकल, स्वर्ग को सिधारे। 
लक्ष्मीपति, दिन बन्धु, साधु काज सारे।। ४।।

दोहा - सिया स्वयंवर हेतु मुनि जनक निमंत्रण पाई। 
राम लखन को संग लै यात्रा किन्ह बनाई।। १।।

टिप्पणी : सआज्य = धृत सहित 

बुधवार, 2 जुलाई 2014

मुदित भये नृप सुनि मुनि वाणी (गीतावली - भजन १३)

"विश्वामित्र द्वारा राम लक्ष्मण की याचना" 

मुदित भये नृप सुनि मुनि वाणी ॥ध्रुव॥

लिन्ह बुलाई राम लछुमन कहँ,
सुंधेउ सीस नयन भरी पानी ॥१॥

बोले तात! प्रणाम करहुँ युग,
ये कौशिक मुनि जप तप खानी ॥२॥ 

इनके संग जाय मख रच्छहुँ,
देहु दण्ड जेते खल प्राणी ॥३॥ 

लक्ष्मीपति, सुनी आयसु रघुवर,
चलेउ सहर्ष सरासन तानी ॥४॥