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सोमवार, 9 जून 2014

ठेंगहा घाट पैदल बाट बना

चिनगारी तृण के ढेरों में कब तक छिपी रह सकती है। बाबाजी की पर्ण कुटी की जगह ठाकुरवारी स्थापित हो चुकी थी। भजनियाँ, पुजारी तथा अन्य कार्यवाहक लोग रहने लगे थे। पथिकों को ठहरने के लिये पथिकाश्रम का निर्माण हो चुका था। सबों के लिए भंडार मुक्त था एवं किसी चीज की कमी नहीं रहती थी। रिऋि-सिद्धि का शुभागमन हो चुका था। योग की अनेकों सिद्धियाँ प्राप्त कर चुके थे।

बाबा जी की महिमा एवं योग चमत्कार सुन-सून कर उस समय उनको अपने यहाँ बुलाने की लोगों में होड़ लग गर्इ थी। एक सज्जन के साथ बाबा जी दरभंगा जा रहे थे। बीच में ठेंगहा घाट तिलयुगा नदी में पड़ता है। स्वामी जी के साथ भजनियों का दल भी था।

नदी को पार करने से पहले घटवार ने घटवारी वसुल करना प्रारम्भ कर दिया। बाबा जी ने हास्य में कहा- ''बाबा जी को पैसा कहाँ से आयेगा कि घटवारी देगा। घटवार ने कर्कश आवाज में कहा- ''ऐसे-ऐसे बहुत से बाबजियों को मैंने देखा है। पेट पूजा तथा लोगों को धोखा देने के लिए बहुत से धूर्त ऐसा रूप बना लेते हैं। साथ के सज्जन ने घटवारी देना चाहा पर बाबा जी ने रोक दिया और कहा- ''मैं बिना शुल्क दिये नहीं जाता, केवल हँसी की थी। कुछ काल समाधिस्थ हो भजनियों से कहा- ''मैं आगे चलता हूँ, तुम लोग मेरे पीछे आओं। किसी ने चिल्लाकर कहा- महाराज पानी अथाह है। बाँस भी थाह नहीं लेता। सब के सब डूब करेंगे। बाबाजी ने उत्तर दिया- ''इसीलिए तो पीछे-पीछे आने के लिये कहता हूँ। जब मैं डूबने लगूँगा तब तुम लोग अपने को बचा लेना। सबों ने आज्ञा मानी। आगे-आगे बाबा जी और पीछे-पीछे अन्य लोग सभी आसानी से पार हो गये। केवल ठेहुना भर पानी हुआ। घटवार आश्चर्य चकित हो दौड़कर पाँव पर गिर गया और कहा- ''बाबा मैंने आपको नहीं पहचाना। क्षमा करें, मैं गरीब घटवारी हूँ। बहुत रूपये लगे हैं। किस्ती बन्द हो जाने से मैं कहीं का नहीं रहूँगा। आप साधु दयालु होते हैं।

स्वामी जी ने कहा- ''धाखेदार बाबा जी से क्या हो सकता है? जो होना था हो गया। नाव उठाकर दूसरी जगह ले जाओ। अब यहाँ नाव नहीं चलेगी। स्वामी जी दलबल के साथ चले गये। तब से लेकर आज तक लोग इस नदी में पैदल ही पार होते हैं। ठेहुना भर पानी से कभी ज्यादा नहीं हुआ।

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