विश्वामित्र द्वारा राम लक्ष्मण की याचना
कौशिक अवध भूप पहँ आये ॥ध्रुव॥
देखत नृप सम्मान किये बहु, सिंहासन पर आनि बिठाये ॥अन्तरा॥
का सेवा मैं करौं मुने तव, पूजि चरण इमि बचन सुनाये।
बोले बचन गाधि कुल-नन्दन, बाघत यज्ञ असुर समुदाये ॥१॥
तिनहिं संहारण हेतु राम कह, लखन सहित सुर धेनु सहाये।
देहु दयाकरि रघुकुल भूषण, रहिहें तुव यश तिहुपुर छाये ॥२॥
सुनि दशरथ किन्हें दुःख अन्तर, राम वियोग असह उर लाये।
किन्तु शाप भय वश इमि बोले, चौथेपन मुनिवर! सुत पाये ॥३॥
राम प्राण प्रिय छाड़ि लेहु जो; चाहत राज पाट सुखदाये।
"लक्ष्मीपति" सुनि कौशिक नृप कहँ, राम रहस्य प्रताप जनाये ॥४॥
कौशिक अवध भूप पहँ आये ॥ध्रुव॥
देखत नृप सम्मान किये बहु, सिंहासन पर आनि बिठाये ॥अन्तरा॥
का सेवा मैं करौं मुने तव, पूजि चरण इमि बचन सुनाये।
बोले बचन गाधि कुल-नन्दन, बाघत यज्ञ असुर समुदाये ॥१॥
तिनहिं संहारण हेतु राम कह, लखन सहित सुर धेनु सहाये।
देहु दयाकरि रघुकुल भूषण, रहिहें तुव यश तिहुपुर छाये ॥२॥
सुनि दशरथ किन्हें दुःख अन्तर, राम वियोग असह उर लाये।
किन्तु शाप भय वश इमि बोले, चौथेपन मुनिवर! सुत पाये ॥३॥
राम प्राण प्रिय छाड़ि लेहु जो; चाहत राज पाट सुखदाये।
"लक्ष्मीपति" सुनि कौशिक नृप कहँ, राम रहस्य प्रताप जनाये ॥४॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें