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बुधवार, 18 जून 2014

सबेरे जेवत चारों भाई (गीतावली - भजन ११)

भोजन काल माता का वात्सल्य भाव 

सबेरे जेवत चारों भाई ॥ध्रुव॥
करि सिंगार गोदी लै बैठी, अपनी अपनी माई ॥ अन्तरा||

चारु सिंहासन रतन हीरामय, चानन चौक पुराई। 
ललित वितान भानु शशि की छबि, बन्दनबार सुहाई ॥१॥

कनक कटोरा भरि भरि मेवा, थार थार चलि आई। 
पुआ पूरी विमल कचौरी, भोजन रुचिर बनाई ॥२॥

खाजा खुरमा नयी जिलेवी, बुनिया लड्डू मिठाई। 
पेड़ा मिसरी शकर वतासा; माखन दूध मलाई ॥३॥

षट्रस चारि प्रकार के भोजन, निर्मल नीर मिलाई। 
बाल भोग दशरथ सुत कीन्हा, "लछन" जूठ कछु पाई ॥४॥

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