(१) परमाणु का ज्ञान :- सुक्ष्मतम पदार्थ को परमाणु कहते हैं । स्वार्थ का अर्थ प्रकृति और परार्थ का अर्थ पुरूष होता है। जब बुध्दि पूर्णतः शुध्द एवं निर्मल रहती है, उस अवस्था को सात्विक स्वार्थ कहते हैं। ध्यान, धारणा एवं समाधि को संयम कहते हैं। "स्वार्थ" में संयम करने से परमाणु का ज्ञान होता है।
(२) असीम बल की प्राप्ति :- बल समुह में संयम [ध्यान, धारणा एवं समाधि] करने से असीम बल की प्राप्ति होती है।
(३) दृष्टि स्तम्भन :- कायाकृति में संयम करने से दृष्टि स्तम्भन शक्ति की प्राप्ति होती है। अंत्रध्यान (तिरोहित) होने में योगी जन इसी सिध्दि का प्रयोग करते है। द्रष्टा की आँखों परदा पड जाता है।
(४) मरण तिथि क ज्ञान :- आगत एवं अनागत कर्मो में संयम करने से यह शक्ति प्राप्त होती है।
(५) आगम्य शक्ति की प्राप्ति :- कण्ठ स्थित उदान वायु में संयम करने से यह शक्ति प्राप्त होती है । आगम्य शक्ति से संयम करने से सम्पंना योगी कीचड काँटे, खाई इत्यादि स्थानों में सुगमता से गमन करते हैं।
(६) अति हल्का बनने का सधना :- जहाँ काया और आकाश का सम्बंध है, वहाँ संयम करने से रूई सा हल्का बनने की शक्ति प्राप्त होती है।
(७) इंद्रिय निग्रह :- ग्रहण, स्वरूप, अस्मिता, अंवय और अथ पर संयम करने से इंद्रियों पर विजय प्राप्त होती है।
(८) सवर्ग्यता की सिध्दि :- चित और पुरूष (चेतनता) पर संयम करने से सवर्ग्यता की सिध्दि होती है।
(९) पंच भूतो [पृथ्वी, जल, पावक, पवन और आकश] के स्थुल, स्वरूप अन्बय तथा अर्थवत में संयम करने से संयम करने से भुतो पर विजय प्राप्त होती है।
उपर्युक्त सिध्दियों के बाद ही, स्वामी जी को निम्नलिखित अष्ट सिध्दियो की प्राप्ति हुई।
(१) अणिमा [अणु से अणु रूप का धारण करना]
(२) महिमा [महान से महान रूप का धारण करना]
(३) गरिमा [अत्यंत भारी होना]
(४) लधिमा [अत्यंत हल्का रूप धारण करना]
(५) प्राप्ति [इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति]
(६) प्राकाम्य [मनोकामना की पूर्ति]
(७) वशीत्व [सम्पूर्ण पंच भूतों को वश में करना]
(८) ईशित्व [उत्पंन, पालन और नाश की शक्ति प्राप्त करना]
(२) असीम बल की प्राप्ति :- बल समुह में संयम [ध्यान, धारणा एवं समाधि] करने से असीम बल की प्राप्ति होती है।
(३) दृष्टि स्तम्भन :- कायाकृति में संयम करने से दृष्टि स्तम्भन शक्ति की प्राप्ति होती है। अंत्रध्यान (तिरोहित) होने में योगी जन इसी सिध्दि का प्रयोग करते है। द्रष्टा की आँखों परदा पड जाता है।
(४) मरण तिथि क ज्ञान :- आगत एवं अनागत कर्मो में संयम करने से यह शक्ति प्राप्त होती है।
(५) आगम्य शक्ति की प्राप्ति :- कण्ठ स्थित उदान वायु में संयम करने से यह शक्ति प्राप्त होती है । आगम्य शक्ति से संयम करने से सम्पंना योगी कीचड काँटे, खाई इत्यादि स्थानों में सुगमता से गमन करते हैं।
(६) अति हल्का बनने का सधना :- जहाँ काया और आकाश का सम्बंध है, वहाँ संयम करने से रूई सा हल्का बनने की शक्ति प्राप्त होती है।
(७) इंद्रिय निग्रह :- ग्रहण, स्वरूप, अस्मिता, अंवय और अथ पर संयम करने से इंद्रियों पर विजय प्राप्त होती है।
(८) सवर्ग्यता की सिध्दि :- चित और पुरूष (चेतनता) पर संयम करने से सवर्ग्यता की सिध्दि होती है।
(९) पंच भूतो [पृथ्वी, जल, पावक, पवन और आकश] के स्थुल, स्वरूप अन्बय तथा अर्थवत में संयम करने से संयम करने से भुतो पर विजय प्राप्त होती है।
उपर्युक्त सिध्दियों के बाद ही, स्वामी जी को निम्नलिखित अष्ट सिध्दियो की प्राप्ति हुई।
(१) अणिमा [अणु से अणु रूप का धारण करना]
(२) महिमा [महान से महान रूप का धारण करना]
(३) गरिमा [अत्यंत भारी होना]
(४) लधिमा [अत्यंत हल्का रूप धारण करना]
(५) प्राप्ति [इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति]
(६) प्राकाम्य [मनोकामना की पूर्ति]
(७) वशीत्व [सम्पूर्ण पंच भूतों को वश में करना]
(८) ईशित्व [उत्पंन, पालन और नाश की शक्ति प्राप्त करना]
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