माधव ई नहि उचित विचार !
जनिक एहनि धनि काम-कला सनि से किअ करु बेभिचार !१!
प्रनहु चाहि अधिक कय मानय हदयक हार समाने !
कोन परि जुगुति आनके ताकह की थिक तोहरे गेआने !२!
कृपिन पुरुषके केओ नहि निक कह जग भरि कर उपहासे !
निज धन अछइत नहि उपभोगब केवल परहिक आसे !३!
भनइ विद्यापति सुनु मथुरापति ई थिक अनुचित काज !
मांगि लायब बित से जदि हो नित अपन करब कोन काज !४!
जनिक एहनि धनि काम-कला सनि से किअ करु बेभिचार !१!
प्रनहु चाहि अधिक कय मानय हदयक हार समाने !
कोन परि जुगुति आनके ताकह की थिक तोहरे गेआने !२!
कृपिन पुरुषके केओ नहि निक कह जग भरि कर उपहासे !
निज धन अछइत नहि उपभोगब केवल परहिक आसे !३!
भनइ विद्यापति सुनु मथुरापति ई थिक अनुचित काज !
मांगि लायब बित से जदि हो नित अपन करब कोन काज !४!
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