कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी !
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी !१!
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी !
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी !२!
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी !
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी !३!
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी !
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी !४!
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी !१!
छोड कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी !
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उधारी !२!
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी !
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी !३!
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी !
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी !४!
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